राष्‍ट्रीय

झारखंड HC का फैसला: सास की सेवा नहीं करने वाली पत्नी नहीं मांग सकती गुजारा भत्ता

सत्य खबर/रांची:

Prashant Kishore का बड़ा बयान! लालू यादव से क्या सीखना चाहते हैं वे? प्रशांत की बिहार चुनाव में अनोखी प्रतिक्रिया
Prashant Kishore का बड़ा बयान! लालू यादव से क्या सीखना चाहते हैं वे? प्रशांत की बिहार चुनाव में अनोखी प्रतिक्रिया

किसी भी भारतीय परिवार में सास-बहू के बीच लड़ाई एक आम कहानी है. कभी-कभी मामला इतना गंभीर हो जाता है कि परिवार टूटने की नौबत आ जाती है। हाल ही में पति-पत्नी के बीच तलाक के मामलों में बढ़ोतरी के पीछे यह भी एक बड़ा कारण है। ऐसे ही एक मामले की सुनवाई करते हुए झारखंड हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. फैसला सुनाते वक्त हाई कोर्ट ने जो टिप्पणी की उसे काफी अहम माना जा रहा है.
दरअसल, पूरा मामला दुमका निवासी रुद्र नारायण राय और उनकी पत्नी पिनाली राय चटर्जी के बीच भरण-पोषण भत्ते को लेकर विवाद का है. दुमका की एक पारिवारिक अदालत ने रुद्र नारायण राय को अपनी अलग रह रही पत्नी को 30 हजार रुपये और अपने नाबालिग बेटे को 15 हजार रुपये देने का आदेश दिया था. इस आदेश को रुद्र नारायण ने हाई कोर्ट में चुनौती दी, जिस पर बुधवार को फैसला आया.
पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश रद्द
याचिकाकर्ता रुद्र नारायण राय ने अपनी पत्नी पर अपनी मां और दादी के साथ अलग रहने के लिए दबाव डालने का आरोप लगाया था। वह घर की दो बूढ़ी महिलाओं की सेवा नहीं करना चाहती. वहीं, पत्नी ने अपने ससुराल वालों पर दहेज उत्पीड़न और क्रूरता का आरोप लगाया है. जस्टिस सुभाष चंद ने दोनों पक्षों की दलीलों और कोर्ट में पेश किए गए सबूतों का अध्ययन करने के बाद फैसला सुनाते हुए कहा कि बूढ़ी सास की सेवा करना बहू का कर्तव्य है. वह अपने पति को अपनी मां से दूर रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकती. पत्नी को अपने पति की माँ और दादी की सेवा करना अनिवार्य है। उन्हें उनसे अलग रहने की जिद नहीं करनी चाहिए.
जस्टिस चंद ने अपने फैसले में महिलाओं को लेकर मनुस्मृति और यजुर्वेद में लिखी ऋचाओं का भी हवाला दिया है. उन्होंने कहा कि जिस परिवार की महिलाएं दुखी होती हैं, वह परिवार शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। जहां महिलाएं संतुष्ट होती हैं, वह परिवार हमेशा फलता-फूलता रहता है। पत्नी द्वारा अपनी बूढ़ी सास या दादी सास की सेवा करना भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था. हालांकि, कोर्ट ने नाबालिग बेटे के भरण-पोषण के लिए रकम 15 हजार रुपये से बढ़ाकर 25 हजार रुपये कर दी.

Salman Khurshid: देशभक्ति और कांग्रेस भक्ति क्यों नहीं हो सकते साथ? Salman Khurshid के विवादित बयान की सच्चाई
Salman Khurshid: देशभक्ति और कांग्रेस भक्ति क्यों नहीं हो सकते साथ? Salman Khurshid के विवादित बयान की सच्चाई

Back to top button